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आज़ादी के 70 साल बाद अब खेती को मिले उद्योग का दर्जा ! 


अब तक 70 सालो में देश की हर सरकार की निगाह में खेती आर्थिक गतिविधि है ही नहीं सरकारें केवल किसान को पेट भरने वाले की नजर से देखती है या कुछ उद्योग के लिए कच्चा माल प्राप्त करने का जरिया मात्र |इसलिए किसान को अब उद्योगपति बनना होगा मतलब बिचौलिय को न बेच के अपना सामान स्वयं बेचना होगा |


क्या भाव बढ़ने से किसान को फायदा हो रहा है ?


ज़मीनी हकीकत यह है की सरकार चाहे कितना बह भाव बढ़ा ले किसान आज भी अपनी उपज को दस साल पहले भाव पर ही बेच रहा है | आप सोचिये जब बाजार में टमाटर २० रुपिय किलो है तो किसान को एक रूपया ही क्यों मिल रहा है जबकि इस कड़ी में हर आदमी को काफी बचत हो रही है टमाटर के २० रुपये को हम ऐसे देख सकते है |

  1. किसान जिसने सबसे ज्यादा मेहनत और खर्च किया - १ रुपय प्रति किलो 
  2. मंडी में कारोबारी ने बेचा उसे 10 रुपय किलो 
  3. रेहड़ी वाले ने फिर उसे 15 से 20 रुपय प्रति किलो के भाव बेचा 


  • उड़द: 2000 रुपए प्रति क्विंटल्र  एमएसपी 5600 रुपए प्रति क्विंटल है 
  • मक्का: 1300 रुपए प्रति क्विंटल   एमएसपी 1700 रुपए प्रति क्विंटल है 
  • मूंग:  5000 रुपए प्रति क्विंटल,   एमएसपी 6975 रुपए प्रति क्विंटल है 
  • सोयाबीन:  2800 रुपए प्रति क्विंटल,  एमएसपी 3399 रुपए प्रति क्विंटल है 
  • कपास:  4600 रुपए प्रति क्विंटल,   एमएसपी 5450 रुपए प्रति क्विंटल है



अब आप सोचो जरा के इसमें किसान को क्या मिला इसी लिए आज कल आप देख रहे है के किसानो ने टमाटर को सड़क पर फेंका |

आजकल आलू भी 20 रुपय किलो बिक रहा है लेकिन ये स्टोरेज वाला आलू है जिसे किसान से मुश्किल से 3 रुपय किलो ख़रीदा गया होगा |  ये ही स्थिति गन्ना किसान की है वहां इसे सड़क पर फेंकने की स्थिति तो नहीं है लेकिन उन्हें इसका ना तो उचित दाम मिल रहा है और जो मिलता है वो भी एक साल के बाद जिसपे कोई ब्याज नहीं मिलता लेकिन जब वो अपने लिए उर्वरक या बीज लेता है तो वही गन्ना समिति जो उसके पैसे का ब्याज नह देता उससे इन सब पर ब्याज लिया जाता है |




eNAM क्या है ?

नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट के नाम से ये एक ऑनलाइन ट्रेडिंग पोर्टल है जिसका ये दावा किया जाता है के ये एक ऑनलाइन मंडी हे जो उचित दाम पर किसान से सामान खरीदती है लेकिन सच्चाई यह है की ये कुछ उद्योगों की बपौती मात्र है जो उनके लिए कच्चा माल सस्ते दाम पर खरीद रही है | लेकिन अगर में मान भी लू के ये फायदेमंद है तो कितने किसानो को इसकी जानकारी है और किसान तो छोडिय सरकार के प्रतिनिधि भी इसके बारे में नहीं जानते और जानते है तो बताओ उन्होंने कितने सुविधा कैंप लगवा कर इसके बारे में जनजागरण किया हे और आप इसके पोर्टल पर जायेंगे तो किसी भी जिले में ये साड़ी फसल नहीं दिखती किसी किसी जिले या केंद्र पर तो ये केवल एक फसल की  दिखा रही है तो बाकी फसल के किसान खान जायेंगे |

Ganna Kisaan


तो अब विकल्प क्या है ?
इसका एक हल तो हमारे देश में ही है जी हाँ तेलंगाना में हर किसान को प्रति एकड़ 8000 रुपय की फिक्स धनराशि मिलती है हलाकि यह बहुत कम है जहां सा सबसे छोटे सरकारी कर्मचारी को भी 18000 के आप पास मिलता है तो अन्नदाता तो इतना तो मिलना ही चाहिए बल्कि उसके परिवार में कितने लोग कृषि कार्य में लगे है ये देख कर उसकी फिक्स इनकम तय करि जाय जो प्रति व्यक्ति एवं प्रति एकड़ दोनों को ध्यान में रख के सुनिश्चित करि जाये |इसके बाद जो न्यूनतम समर्थन मूल्य है उस भाव पर उसकी फसल बिक़े ये सुनिश्चित करना होगा मतलब दलाली सिस्टम को समाप्त करना पड़ेगा |



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